Sunday, 15 November 2015




नमता मन, रमता मन


मन नम है
मोह न मना
पास सवेरा संग है
काली रात का जना

टूटी हुई मनकी
दिखे बिखरे हुए तन सी
जानकर कुछ जानी 
तो कुछ अनजान ही सी

जो बिखरे 
वो बन तो जाये
पर चंद माथे की लकीरों सी 
दाग छोड़ जाये

हर मनके सा रमता मन
मन नम है
मोह न मना
पास सवेरा संग है
काली रात का जना


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